वक्त को शायराना कर।
तू खिलाकर शाम के सन्नाटों से।
रूठा है जो ये वक्त तेरा,
याद रख सब पन्ने हो जाएंगे...
पुरानी एक किताब के।
यह जो बिखेर रखा है जिसने तुझे..
तू भी बेखौफ बिखेर दे उस डर को।
तू राख बनने का इंतज़ार मत कर।
सुबह होती है उनकी,
जो करते हैं ना इंतज़ार रातों की।
गहरी खामोशियां,
बिखरा वजूद,
अधूरे पन्ने,
तू खुद ही लिख कर समेट दे,
इससे पहले कि वो समेट ना ले तुझे।
वक्त को शायराना कर,
तू खिलाकर फिर शाम के सन्नाटों से ।।।
तू खिलाकर शाम के सन्नाटों से।
रूठा है जो ये वक्त तेरा,
याद रख सब पन्ने हो जाएंगे...
पुरानी एक किताब के।
यह जो बिखेर रखा है जिसने तुझे..
तू भी बेखौफ बिखेर दे उस डर को।
तू राख बनने का इंतज़ार मत कर।
सुबह होती है उनकी,
जो करते हैं ना इंतज़ार रातों की।
गहरी खामोशियां,
बिखरा वजूद,
अधूरे पन्ने,
तू खुद ही लिख कर समेट दे,
इससे पहले कि वो समेट ना ले तुझे।
वक्त को शायराना कर,
तू खिलाकर फिर शाम के सन्नाटों से ।।।
-राज सिद्धि
Author Website- http://rajsiddhi.in/
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