ये कहानी एक ऐसी लड़की की है, जो दुनियादारी से अंजान अपने आप
में ही रहने वाली, परिवार की बंदिशों के बीच पली - बढ़ी, फिर भी अपनी दुनिया में खुश है
।
जीवन का एक सफर कब उसकी जिंदगी को बदलने लगती है खुद
उसे पता नहीं चलता, कब वो अंजान हमसफ़र जीवन भर का साथी बनने लग जाता है, जबकी उसने इसकी कल्पना कभी की नहीं थी, वो तो परिवार के साथ चले जा रही थी, धीरे – धीरे ही सही लेकिन प्यार के एहसास को महसूस करने लगती है, परिवार की बंदिशें संग हैं जिस वजह से वो उस एहसास को
नकारने में लगी रहती है, वो जानती है ना प्यार करना आसान है और ना प्यार निभाना, लेकिन दिल के आगे ज़ोर किसका चला है जो उसका चलता ।
जीवन के सफर में कभी - कभी रास्ते उतने सीधे नहीं होते
जितना हम सोचते हैं, मोड़ तो आता ही है जो जिंदगी जीने
के और जिंदगी को देखने के नज़रिये को भी मोड़ देता है ।
प्यार तो हुआ सो हुआ पर क्या उस प्यार को अपनाया जा सकता
है, क्या पल भर का प्यार परिवार से ऊपर होता है । जिन्होंने पाला
– पोसा, जिंदगी दी, उन्हें दुःख देना कहाँ की रीत है, यही सब उसके दिल और दिमाग में द्वंद पैदा करता ।
जब दिल और दिमाग आपस में बातें करते हैं तो ये फैसला
करना मुश्किल हो जाता है कि कौन सही है और कौन गलत, या तो दोनों अपनी जगह सही हैं या दोनों अपनी जगह गलत ।
वो जानती है कि उसके प्यार को उसके परिवार वाले कभी नहीं
अपनाएंगे, फिर भी एक कोशिश की जाती है, कुछ घटना कर्म के चलते वो कश्मकश में रह जाती है कि अंत में किसकी ख़ुशी चुनुँ परिवार
की या मेरी अपनी ख़ुशी.............
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